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आदिवासी जनजातिय लोगों को संरक्षण और बढ़ावा देने, इनकी संस्कृति व सम्मान को बचाने के लिए आदिवासी दिवस मनाने की है जरूरी, इंजीं. विवेक सोनी*

आदिवासी जनजातिय लोगों को संरक्षण और बढ़ावा देने, इनकी संस्कृति व सम्मान को बचाने के लिए आदिवासी दिवस मनाने की है जरूरी, इंजीं. विवेक सोनी

द चाणक्य टाइम्स/सीधी/सिगरौली/09/08/2023

 आम आदमी पार्टी के युवा नेता एवं लोकसभा क्षेत्र सीधी के ज्वाइंट सेक्रेट्री एवं पूर्व जिला अध्यक्ष सीधी ने विश्व आदिवासी दिवस के दिन आदिवासियों के मानव-सम्मान संस्कृति एवं आदिवासी समुदाय को बढ़ावे के लिए विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासियों को विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए बताया कि दुनिया के तमाम देशों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. इनकी भाषाएं, संस्‍कृति, त्‍योहार, रीति-रिवाज और पहनावा सबकुछ अलग है. इस कारण ये समाज की मुख्‍यधारा से नहीं जुड़ पाए हैं.आदिवासी लोगों को अपना अस्तित्व, संस्कृति और सम्मान बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. इस जनजाति को संरक्षण और बढ़ावा देने, इनकी संस्कृति व सम्मान को बचाने के लिए आदिवासी दिवस मनाया जाता है.अमेरिकी आदिवासियों का बड़ा योगदान दुनिया की स्वदेशी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना और पर्यावरण संरक्षण जैसे विश्व मुद्दों के प्रति स्वदेशी लोगों के योगदान को स्वीकार करना विश्व के 90 से अधिक देशों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। दुनिया में आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 37 करोड़ है, जिसमें लगभग 5000 अलग-अलग आदिवासी समुदाय हैं और उनकी लगभग 7 हजार भाषाएँ हैं। इसके बावजूद आदिवासियों को अपने अस्तित्व, संस्कृति और सम्मान को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आज पूरे विश्व में नस्लवाद, रंगभेद, उदारीकरण जैसे कई कारणों से आदिवासी समुदाय के लोग अपने अस्तित्व और सम्मान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। झारखंड की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी हिस्सा आदिवासी समाज के लोग हैं. इनमें संथाल, बंजारा, बिहोर, चेरो, गोंड, हो, खोंड, लोहरा, माई पहाड़िया, मुंडा, ओरांव आदि बत्तीस से अधिक आदिवासी समूहों के लोग शामिल हैं।
यही कारण है कि जनजातीय समाज के उत्थान और उनकी संस्कृति और सम्मान को बचाने के साथ-साथ जनजातीय जनजातियों को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। *गोंड जनजाति*
गोंड जनजातियाँ मुख्यतः मध्य भारत में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में पाई जाती हैं। इन्हें छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में भी देखा जाता है। *भील जनजाति*
भारत में यह आदिवासी समुदाय ज्यादातर उदयपुर में सिरोही की अरावली पर्वतमाला और राजस्थान के डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों के कुछ स्थानों में देखा जाता है। इसके अलावा, भील जनजातियों की बस्तियाँ गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और त्रिपुरा के कुछ हिस्सों में भी पाई जाती हैं। सांस्कृतिक सद्भाव – घूमर नृत्य, थान गैर (एक धार्मिक नृत्य और नाटक) बाणेश्वर मेला है जो जनवरी या फरवरी में आयोजित होता है जो प्रमुख आकर्षण हैं।
*महान अंडमानी जनजाति*
ग्रेट अंडमानी जनजाति, जिसमें ओन्गे, जारवा, जांगिल और सेंटिनलीज़ शामिल हैं, को द्वीपों का पहला निवासी कहा जाता है। लेकिन आज एक बड़ी संख्या विलुप्त होने की ओर है। बहरहाल, ग्रेट अंडमानीज़ की बची हुई आबादी काफी हद तक सर्वाइवल और भारतीय संगठनों के जोरदार अभियान पर निर्भर है। *संथाल जनजाति*
संथाल बड़े पैमाने पर कृषि और पशुधन पर निर्भर हैं। ये जनजातियाँ पश्चिम बंगाल की प्रमुख जनजातियाँ हैं और ज्यादातर बांकुरा और पुरुलिया जिलों में देखी जाती हैं। इन्हें बिहार, झारखंड, ओडिशा और असम के कुछ हिस्सों में भी व्यापक रूप से देखा जाता है।
*गारो जनजाति*
गारो जनजातियाँ आदर्श रूप से अपनी जीवंत जीवनशैली के लिए जानी जाती हैं। वे ज्यादातर मेघालय की पहाड़ियों और बांग्लादेश के पड़ोसी क्षेत्रों और पश्चिम बंगाल, असम और नागालैंड के कुछ हिस्सों में देखे जाते हैं। गारो जनजातियों को मेघालय की अन्य जनजातियों से अलग करना आसान है।
*मुंडा जनजाति*
उनकी बस्ती मुख्य रूप से छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में स्थित है और ज्यादातर झारखंड के घने इलाकों में देखी जाती है। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा के कुछ हिस्सों में भी मुंडा जनजातियाँ निवास करती हैं। *क्रुरुंबन जनजाति*
कुरुंबन जनजाति एक साधारण जीवन शैली का प्रदर्शन करती है, जो मुख्य रूप से तमिलनाडु और केरल में कृषि उत्पादों पर निर्भर है। इसके अलावा, वे व्यापक रूप से जादू टोना और जादुई प्रदर्शन के साथ-साथ पारंपरिक हर्बल दवाओं के लिए भी जाने जाते हैं। केरल का प्रमुख त्योहार ओणम है। *बोडो जनजाति* बोडो जनजातियाँ आज असम के उदलगुरी और कोकराझार और पश्चिम बंगाल और नागालैंड के कुछ हिस्सों में पाई जाती हैं। इसके अलावा, बोडो जनजातियाँ मांस खाने वाले लोग हैं। *इरुलास जनजाति*
लगभग 3,00,000 की आबादी के साथ, इरुला तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल के कुछ हिस्सों में रहते हैं। इसके अलावा, इरुला केरल की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है और ज्यादातर पलक्कड़ जिले में देखी जाती है। *टोटो जनजाति*
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के टोटोपारा गांव में रहने वाले अलग-थलग आदिवासी समूहों में से एक टोटो जनजाति है। उनकी जीवनशैली सरल है और वे काफी हद तक सब्जियों और फलों के व्यापार पर निर्भर हैं।
आम आदमी पार्टी के नेता श्री सोनी ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर सभी आदिवासी भाई बहनों को विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं दी एवं बताया कि वर्तमान समय में भारत देश के मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में जिस प्रकार से आदिवासियों को बेइज्जत एवं आदिवासियों के ऊपर मारपीट और गोली कांड जैसे कार्य किए जा रहे हैं जो कि बिल्कुल ही यह दर्शाता है कि भाजपा की सरकार आदिवासियों के संरक्षण का झूठ डिडोरा पीट रही है सरकार विश्व आदिवासी दिवस मनाने के साथ-साथ आदिवासियों के हितों और उनके अधिकारों पर भी विशेष रुप से ध्यान दें जिससे कि आदिवासी समाज के लोग बिना डर और भय के देश और प्रदेश में निवास कर सकें। ।
उक्त जानकारी इंजी.विवेक सोनी ज्वाइंट सेक्रेट्री लोकसभा क्षेत्र सीधी-11 एवं पूर्व जिला अध्यक्ष सीधी मध्य प्रदेश ने दी है मो.9617910023,8839123561,

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